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कद्व॑ ऋ॒तस्य॑ धर्ण॒सि कद्वरु॑णस्य॒ चक्ष॑णम्। कद॑र्य॒म्णो म॒हस्प॒थाति॑ क्रामेम दू॒ढ्यो॑ वि॒त्तं मे॑ अ॒स्य रो॑दसी ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kad va ṛtasya dharṇasi kad varuṇasya cakṣaṇam | kad aryamṇo mahas pathāti krāmema dūḍhyo vittam me asya rodasī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कत्। वः॒। ऋ॒तस्य॑। ध॒र्ण॒सि। कत्। वरु॑णस्य। चक्ष॑णम्। कत्। अ॒र्य॒म्णः। म॒हः। प॒था। अति॑। क्रा॒मे॒म॒। दुः॒ऽढ्यः॑। वि॒त्तम्। मे॒। अ॒स्य। रो॒द॒सी॒ इति॑ ॥ १.१०५.६

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:105» मन्त्र:6 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:15» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर इनको परस्पर क्या-क्या पूछना और समाधान करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! (वः) इन स्थूल पदार्थों के (ऋतस्य) सत्य कारण का (धर्णसि) धारण करनेवाला (कत्) कहाँ है (वरुणस्य) जल आदि कार्यरूप पदार्थों का (चक्षणम्) देखना (कत्) कहाँ है तथा (महः) महान् (अर्यम्णः) सूर्य्यलोक का जो (दूढ्यः) अति गम्भीर दुःख से ध्यान में आने योग्य व्यवहार है उसको (कत्) किस (पथा) मार्ग से हम (अति, क्रामेम) पार हों अर्थात् उस विद्या से परिपूर्ण हों। और शेष मन्त्रार्थ प्रथम मन्त्र के तुल्य जानना चाहिये ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - विद्या प्राप्ति की इच्छावाले पुरुषों को चाहिये कि विद्वानों के समीप जाकर कार्य्य और कारण की विद्या के मार्ग विषयक प्रश्नों को कर उनसे उत्तर पाकर क्रियाकुशलता से कामों को सिद्ध करके दुःख का नाश कर सुख पावें ॥ ६ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरेतैः परस्परं किं किं प्रष्टव्य समाधातव्यं चेत्युपदिश्यते ।

अन्वय:

हे विद्वांसो व एतेषां स्थूलानां पदार्थानामृतस्य सत्यस्य कारणस्य धर्णसि कत् क्वास्ति वरुणस्य चक्षणं कदस्ति महोऽर्यम्णे यो दूढ्यो व्यवहारस्तं कत् केन पथाऽतिक्रामेम तस्य पारं गच्छाम तद्विद्यया परिपूर्णा भवेमेति यावत्। अन्यत् पूर्ववत् ॥ ६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कत्) क्व (वः) एतेषाम् (ऋतस्य) कारणस्य (धर्णसि) धर्त्ता। अत्र सुपां सुलुगिति विभक्तेर्लुक्। (कत्) (वरुणस्य) जलादिकार्यस्य (चक्षणम्) दर्शनम् (कत्) केन (अर्यम्णः) सूर्यस्य (महः) महतः (पथा) मार्गेण (अति) (क्रामेम) ऊल्लङ्घयेम (दूढ्यः) दुःखेन ध्यातुं योग्यो व्यवहारः (वित्तं, मे अस्य, रोदसी) इति पूर्ववत् ॥ ६ ॥
भावार्थभाषाः - विद्यां चिकीर्षुभिर्विदुषां सविधं प्राप्य कार्यकारणविद्यामार्गप्रश्नान् कृत्वोत्तराणि लब्ध्वा क्रियाकौशलेन कार्याणि संसाध्य दुःखं निहत्य सुखानि लब्धव्यानि ॥ ६ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्याप्राप्तीची इच्छा करणाऱ्या पुरुषांनी विद्वानांकडे जावे व कार्यकारण विद्यामार्गाबाबत प्रश्न विचारून त्यांच्याकडून उत्तर घ्यावे. क्रियाकुशलतेने काम सिद्ध करून दुःखाचा नाश करून सुख प्राप्त करावे. ॥ ६ ॥